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गिरनार का इतिहास

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  गुजरात में जूनागढ़ के निकट एक पर्वत का नाम है। गिरनार की पहाड़ियों से पश्चिम और पूर्व दिशा में भादस, रोहजा, शतरूंजी और घेलो नदियां बहती हैं। इन पहाड़ियों पर मुख्यतः भील और डुबला लोगों का निवास है। एशियाई सिंहों के लिए विख्यात 'गिर वन राष्ट्रीय उद्यान' इसी क्षेत्र में स्थित है। खंबलिया, धारी विसावदर, मेंदरदा और आदित्याणा यहाँ के प्रमुख नगर हैं। इतिहास गिरनार का प्राचीन नाम 'गिरिनगर' था। महाभारत में उल्लिखित रेवतक पर्वत की क्रोड़ में बसा हुआ प्राचीन तीर्थ स्थल। पहाड़ी की ऊंची चोटी पर कई जैन मंदिर है। यहां की चढ़ाई बड़ी कठिन है। गिरिशिखर तक पहुंचने के लिए सात हज़ार सीढ़ियाँ हैं। इन मंदिरों में सर्वप्रचीन, गुजरात नेरश कुमारपाल के समय का बना हुआ है। दूसरा वास्तुपाल और तेजपाल नामक भाइयों ने बनवाया था। इसे तीर्थंकरमल्लिनाथ का मंदिर कहते हैं। यह विक्रम संवत् 1288 (1237 ई.) में बना था। तीसरा मंदिर नेमिनाथ का है, जो 1277 ई. के लगभग तैयार हुआ था। यह सबसे अधिक विशाल और भव्य है। प्रचीन काल में इन मंद...

सरदार पटेल ने देश की सेवा

 Navab Junagarh Chhod Kar Pakistani Chala Gaya vahan jakar usne Pakistan ke naam Junagarh kar diya Uske bad Sardar Vallabhbhai Patel Hindustan Ke Sath Jo Bhi Koi Aisa kar sakta tha vah sab mitane ki shuruaat Junagarh Se Ki ab vah kaise ki Ham likh rahe hain Hindi me 31 अक्टूबर 1875 को जन्मे सरदार पटेल ने देश की सेवा में अहम योगदान दिया है। उनका जन्म गुजरात में हुआ था और आजादी के बाद वे देश के पहले उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री रहे हैं। महात्मा गांधी के साथ स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। प्रखर व्यक्तित्व और अदम्य साहस की बदौलत ही उन्होंने भारत को एक धागे में पिरोने का काम किया। उन्होंने अपनी अंतिम सांस 15 दिसंबर 1950 में ली थी। आजादी के बाद बंटवारे के समय में सरदार पटेल ने भारतीय रियासतों के विलय से स्वतंत्र भारत को नए रूप में गढ़ने में अहम भूमिका निभाई थी। राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है जन्मदिवस  भारत की बागडोर को एक सूत्र में संभालने वाले पटेल ने लंदन में बैरिस्टर की पढाई की थी। लेकिन वो शुरुआत से ही महात्मा गांधी के विचारों से काफी प्रभा...

देश आजाद हुआ तो जूनागढ़ के नवाब ने क्या किया?

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   जूनागढ़ के नवाब के श्वान प्रेम के बारे में जानने के लिए।   जूनागढ़ के महल में कुत्तों के लिए कैसी सुविधाएं थीं?   जूनागढ़ के नवाब ने रोशनआरा की शादी का कैसा इंतजाम किया?   देश आजाद हुआ तो जूनागढ़ के नवाब ने क्या किया? nawab of junagadh Muhammad Mahabat Khan III Story :  अगर आपकी दिलचस्पी राजाओं, महाराजाओं और नवाबों के किस्से जानने में है तो उनमें साहस, वीरता, पराक्रम और न्याय के कम और क्रूरता, मूर्खता, अन्याय और लंपटई के किस्से अधिक मिलेंगे। आज हम आपको जिस नवाब की कहानी सुना रहे हैं, वह लगती तो अविश्वसनीय है, लेकिन है एकदम सच्ची। एक ऐसा नवाब जो दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार अगर किसी को करता था, तो अपने कुत्तों को करता था। जानवरों से प्यार करना अच्छी बात है, लेकिन ऐसा प्यार किस काम का जिसमें न जानवरों का भला हो और न जनता का। ऐसा प्यार किस काम का, जिसके चक्कर में इंसान अपनी बीवियों को भूल जाए। बीवियों और कुत्तों में से एक को चुनना पड़े तो बीवियों को छोड़कर कुत्तों को जहाज में बैठाकर पाकिस्तान भाग जाए। यह सोचे बगैर कि कुत्ते अपनी जगह छोड़ना ज्यादा ...

Junagarh ka navab Gaya Pakistan

 1911 - 1959 Colonel H.H. Shri Diwan Nawab Sir Muhammad Mahabat Khanji III Rasul Khanji, Nawab Sahib of Junagadh, GCIE (1.1.1931), KCSI (1.1.1926).  b . at Junagadh, 2 nd  August 1900, youngest son of H.H. Shri Diwan Nawab Sir Muhammad Rasul Khanji Mahabat Khanji, Nawab Sahib of Junagadh, GCSI, by his wife, H.H. Nawab Ayesha Bi Maji Sahiba,  educ . Mayo Coll, Ajmer, Rajputana. Became Heir Apparent on the death of his elder brother. Succeeded on the death of his father 22 nd  January 1911. Installed on the  musnaid on the same day at Junagadh. Reigned under a Council of Regency until he came of age and was invested with full ruling powers, 31 st  March 1920. Granted a permanent salute of 13-guns, 1 st  January 1918. He acceded to the Dominion of Pakistan, 14 th  September 1947 (formally accepted by the Governor-General of Pakistan, 15 th  September 1947). As a consequence of threats to his safety, the Nawab was forced to leave for Pakista...

Junagadh ke raja aor navab

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 Humne chapter 3 mein dekha ki ra vans mein कौन-कौन Raja the कौन-कौन raniyan Thi Aakhir uski histry Sun yah Thi Rajiya ke Vanshaj ki kahani Uske bad Aage Junagarh ke upar Raja Chhai khatm Ho Gai Rajput ka Rajwada Chala Gaya aur uske bad Aaya vah bhi navab ab Chalte Hain Boby navab Ne a gaye kya kiya usne Raja banaa ka navab tha Junagarh ka navab   अगर आपकी दिलचस्पी राजाओं, महाराजाओं और नवाबों के किस्से जानने में है तो उनमें साहस, वीरता, पराक्रम और न्याय के कम और क्रूरता, मूर्खता, अन्याय और लंपटई के किस्से अधिक मिलेंगे। आज हम आपको जिस नवाब की कहानी सुना रहे हैं, वह लगती तो अविश्वसनीय है, लेकिन है एकदम सच्ची। एक ऐसा नवाब जो दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार अगर किसी को करता था, तो अपने कुत्तों को करता था। जानवरों से प्यार करना अच्छी बात है, लेकिन ऐसा प्यार किस काम का जिसमें न जानवरों का भला हो और न जनता का। ऐसा प्यार किस काम का, जिसके चक्कर में इंसान अपनी बीवियों को भूल जाए। बीवियों और कुत्तों में से एक को चुनना पड़े तो बीवियों को छोड़कर कुत्तों को जहाज में बैठाकर पाकिस्तान भाग जाए।...

Junagadh Rajvanshi

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जूनागढ़ रा’ चुडासमा राजवंश / JUNAGADH   > जुनागढ का नाम सुनते ही लोगो के दिमाग मे “आरझी हकुमत द्वारा जुनागढ का भारतसंघ मे विलय, कुतो के शोखीन नवाब, भुट्टो की पाकिस्तान तरफी नीति ” जैसे विचार ही आयेंगे, क्योकी हमारे देश मे ईतिहास के नाम पर मुस्लिमो और अंग्रेजो की गुलामी के बारे मे ही पढाया जाता है, कभी भी हमारे गौरवशाली पूर्खो के बारे मे कही भी नही पढाया जाता || जब की हमारा ईतिहास इससे कई ज्यादा गौरवशाली, सतत संघर्षपूर्ण और वीरता से भरा हुआ है ||   > जुनागढ का ईतिहास भी उतना ही रोमांच, रहस्यो और कथाओ से भरा पडा है || जुनागढ पहले से ही गुजरात के भुगोल और ईतिहास का केन्द्र रहा है, खास कर गुजरात के सोरठ प्रांत की राजधानी रहा है || गिरीनगर के नाम से प्रख्यात जुनागढ प्राचीनकाल से ही आनर्त प्रदेश का केन्द्र रहा है || उसी जुनागढ पर चंद्रवंश की एक शाखा ने राज किया था, जिसे सोरठ का सुवर्णकाल कहा गया है || वो राजवंश चुडासमा राजवंश | जिसकी अन्य शाखाए सरवैया और रायझादा है || > मौर्य सत्ता की निर्बलता के पश्चात मैत्रको ने वलभी को राजधानी बनाकर सोरठ और गुजरात पर राज कि...

Ra navghan

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  रा’ नवघण         https://pocketnovel.onelink.me/tSZo/djacwa7a सौराष्ट्र मे कइ शासकोने अपने नेक टेक और धर्म से शासन कर प्रजामे अपने नाम को अमर किया है, एक एसे शासक हुए पुरे सौराष्ट्र पर जीनकी सत्ता चलती थी, जुनागढ के उपरकोट के किल्ले मे जिनकी राजगद्दी थी, वो थे चुडासमा राजवी रा’ डियास.         पाटणपति राजा दुर्लभसेन सोलंकी ने जुनागढ पर आक्रमण कीया. कइ साल घेरा रखने के बावजुद भी जब उस से उपरकोट का किल्ला जीत नही शका, सोलंकीने अपने दशोंदी चारण को बुलाया, दुर्लभसेन सोलंकी यह जानता था की रा’ डियास बहुत बडा दानी है, वे कीसी याचक को कभी निराश नही करेगा. अपने चारण को कीसी भी तरह से रा’ डियास का सर दान मे ले आने को कहा.             उस समय युद्ध गंभीर कीतना हो लेकिन चारण कीसी भी पक्ष मे बिना रोकटोक जा शकते थे. रा’ डियास सोलंकी ओ का सामना करने हेतु सभा भर कर बेठे थे, वहां चारण आया, राजपुत सभा को रंग देकर दुहा-छंद की बिरदावली शुरु की, राजपुतो की प्रशस्ति के छ...