Maharaj Ashok ki Shila

 Ra Navgarh ke Itihaas Se Lekar rakhega aur Junagarh tale Ti ke Itihaas Tak Humne Dekha ab Ham Dekhenge HAL hi mein 2023 mein Junagarh Talati Mein Rahane wale Mahatma Sadhu Pau Nath ko kya mante Swarg Jaisa hi hai Fir Bhi Ham Aaj uska vivaran Karenge to Dekhte rahiye Hamare channel

Mera Naam Ajaybhai

Mul vatni ====Junagarh

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Maharaj Ashok  ki Shila


अर्थशास्त्र में लिखी कई बातें कई प्राचीन ग्रंथों में भी पाई जाती हैं। देश के प्रायः हरेक भाग में कई कालखंडों के कई शिलालेख पाए गए हैं जिनमें बांधों, तालाबों, तटबंधों के रखरखाव और प्रबंधन की सूचनाएं खुदी हुई हैं। जूनागढ़ (गुजरात) में दो शिलालेखों में बाढ़ से नष्ट तटबंध की मरम्मत के बारे में दिलचस्प सूचनाएं हैं।

पहला शिलालेख शक् संवत् 72 (150-151 ई.) का है, शक शासक रुद्रदमन का इस शिलालेख में महाक्षत्रप रुद्रदमन द्वारा सुदर्शन झील की मरम्मत आदि के दिलचस्प विवरण हैं। शुरू में इस झील का निर्माण चंद्रगुप्त मौर्य के अधिकारी पुष्यगुप्त ने करवाया था। बाद में अशोक के शासन में इसमें और सुधार किया गया। यवन राजा तुशाष्य ने इस झील से नहर निकलवाया। यह झील उर्जयत (गिरनार) में उर्जयत पहाड़ी से निकले सुवर्णसिकता और पालसिनी झरनों के पानी को जमा करके बनाई गई थी। 150-151 ई. से थोड़ा पहले उर्जयत पहाड़ी के सुवर्णसिकता, पालसिनी और दूसरे झरनों में बाढ़ के कारण तटबंधों में दरार पड़ गई और सुदर्शन झील समाप्त हो गई। बांध को फिर से बनाने का काम राजा रुद्रदमन के पल्लव मंत्री सुविसाख ने किया। सुविसाख की नियुक्ति सुवर्ण और सौराष्ट्र प्रांतों का शासन चलाने के लिए की गई थी।

शिलालेख से कई बातें सामने आती हैं। झील के पानी का उपयोग राजा तुशाष्य द्वारा खुदवाई गई नहरों से सिंचाई के लिए होता था। चार शताब्दी बाद उसकी मरम्मत एक पहलव या पल्लव सामंत ने करवाई। दोनों ही काम विदेशियों ने किए। इस तरह यह शिलालेख केवल बांध ही नहीं, झील का भी एक रिकॉर्ड है। इससे पता चलता है कि ई.पू. चौथी शताब्दी में भी लोग बांध, झील और सिंचाई प्रणाली का निर्माण जानते थे।

तीन सौ साल बाद मरम्मत आदि का काम पूरा होने पर 455-456 ई. में सुदर्शन झील भारी बरसात के कारण फिर टूट गई। 456 ई. में चक्रपालित के आदेश पर इस विशाल दरार की मरम्मत करके तटबंधों को दो महीने में दुरुस्त किया गया। सम्राट स्कंदगुप्त (455-467 ई.) के काल के जूनागढ़ के एक शिलालेख से पता चलता है कि चक्रपालित ने सुदर्शन झील के तटबंध की मरम्मत करवाई।

दोनों शिलालेखों में कई समान बातें दर्ज हैं। दोनों में झील का नाम सुदर्शन तातक या ताड़क बताया गया है। यह भी बताया गया है कि झील पालसिनी नदी (रुद्रदमन के शिलालेख में सुवर्णसिकता नाम भी दिया गया है) और दूसरे झरनों पर सेतुबंधन या तटबंध बनाकर तैयार की गई। कौटिल्य ने भी तटबंध के लिए सेतु शब्द का प्रयोग किया है। सेतु और सेतुबंधन शब्द कई संस्कृत ग्रंथों में भी मिलते हैं। रुद्रदमन के शिलालेख में दूसरे शब्द जो प्रयोग किए गए हैं वे हैं- नहर के लिए प्रणाली, कचरा बंधारा के लिए परिवह, झील से गाद की सफाई के लिए मिधविधान। प्रत्येक शिलालेख ने दरार का पूरा नाप-जोख बताया है और तटबंध के पुनर्निर्माण में लगे समय का पूरा ब्यौरा दिया है। इन तटबंधों को शुरू में मिट्टी से बनाया गया था जिनके दोनों तरफ पत्थर लगाए गए थे। देश भर में निर्माण का यह ठोका-बजाया तरीका तब तक अपनाया जाता रहा जब तक सीमेंट और कंक्रीट नहीं आ गए। सुदर्शन झील पर अपने अनुसंधान के दौरान प्रख्यात इतिहासज्ञ आर.एन. मेहता ने कचरा बंधारा का पता लगाया जिसे जोगनियो पहाड़ी को काटकर बनाया गया था। इसे स्थानीय भाषा में डुंगर कहा जाता है। ऐसे कचरा बंधारे पहाड़ों में कई जगह पाए जा सकते हैं। तटबंध के नष्ट हो जाने के कारण सुदर्शन झील शायद आठवीं या नौंवी ई. में बेकार हो गई और फिर से प्रयोग में नहीं लाई जा सकी। इस तरह इसका जीवन काफी लंबा करीब एक हजार वर्षों का रहा

8 मई 2023

ग्रामीण क्षेत्रों में 90% आबादी पीने के लिए भू-जल पर निर्भर है क्योंकि कई बार शहर के जल आपूर्ति विभाग या कंपनियां उन्हें पीने के लिए पानी की बुनियादी आवश्यकता प्रदान करने में विफल रहती हैं। वर्ष 2015 में लगभग 48% सिंचाई प्रक्रिया इसी भू-जल के माध्यम से की गई थी और तब से जल स्तर तेजी से घट रहा है। 

5 मई 2023

भारत में वार्षिक औसत वर्षा 1160 मिलीमीटर है. देश में बहुत बड़ा क्षेत्र सूखाग्रस्त है, जो वर्षा पर निर्भर है. जो कुल खाद्यान्न उत्पादन में लगभग 44 प्रतिशत का योगदान करता हैं इसके साथ-साथ 40 प्रतिशत मानव एवं 60 प्रतिशत पशुपालन में सहयोग करता है
25 अप्रैल 2023

शहरों में भूजल स्तर लगातार नीचे को खिसकता जा रहा है। पारंपरिक जल संरक्षण के व्यावहारिक उपायों को हमने आधुनिकता के दबाव में त्याग दिया। आज जल संरक्षण को एक राष्ट्रीय दायित्व के रूप में अपनाने का समय आ गया है। लेखक भारतीय संदर्भ में जल संसाधन के अनुभवी विशेषज्ञ है और प्रस्तुत लेख में उन्होंने भारत में जल के भौगोलिक वितरण, वर्षा के पैटर्न, पेयजल, तालाब संस्कृति और जल संरक्षण हेतु जल जागरूकता जैसे मुद्दों पर चर्चा की है

 

दस हजार सीढ़ियां चढ़कर पहुंचें गिरनार, स्वर्ग का करें अनुभव

गुजरात के जूनागढ़ के सौराष्ट्र में स्तिथ है गिरनार। यह गुजरात का सबसे ऊंचा और पवित्र पर्वत है। इसे रेवतक पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। यह जैन और हिंदू मंदिरों से ढका है। दूर-दूर से तीर्थयात्री शिखर तक 10,000 पत्थर की सीढ़ियां चढ़ने के बाद आते हैं। इन सीढ़ियों कि चढ़ाई सुबह में करना सही माना जाता है। सुबह की रोशनी में चढ़ना मंत्रमुग्ध करने वाला अनुभव होता है।
अगर आप सबसे ऊपर के मंदिरों तक पहुंचने का प्लान कर रहे हैं तो पूरा दिन यहां बिताने के लिए तैयार रहें। क्योंकि यहां के सबसे उपर वाले मंदिर तक पहुंचने में रात हो जाएगी।
दें गिरनार पर्वत पर करीब 866 जैन और हिंदू मंदिर स्थित है। वहीं इतिहास की बात करे तो यहां 110वीं शताब्दी का सबसे बड़ा और सबसे पुराना नेमिनाथ का मंदिर है जो 22वें तीर्थंकर को समर्पित है। यहां बहुत सारे मंदिरों में सुबह 11 बजे से दोपहर 3 बजे तक ताला लगा रहता है, लेकिन यह दिन भर खुला रहता है। साथ ही यहां दो भाइयों द्वारा 1177 में बनवाया गए नौवें तीर्थंकर को समर्पित मल्लीनाथ का ट्रिपल मंदिर भी है। त्योहारों के दौरान, इस मंदिर में कई आध्यात्मिक गुरु आते रहते हैं।

आपको अलग अलग हिंदू मंदिर मिलेंगे। पहली चोटी पर स्तिथ है अम्बा माता का मंदिर, जहां नवविवाहितों जोड़ी एक सुखी विवाह सुनिश्चित करने के लिए पूजा अर्चना करते हैं। आपको बता दें गोरखनाथ का मंदिर गुजरात की सबसे ऊंची चोटी पर है। इसकी ऊंचाई 1117 मीटर है। वहीं खड़ी चोटी पर एक मंदिर है जिसमें विष्णु जी का तीन मुखी अवतार हैं। अंतिम चौराहे के ऊपर, देवी काली का मंदिर है।
I करें यहां घूमने के सबसे अच्छे समय की तो यहां घूमने का सबसे अच्छा समय नवंबर और फरवरी के बीच है। लेकिन जनवरी-फरवरी के महीने में पांच गिरनार परिक्रमा उत्सव के दौरान बहुत ज़्यादा मात्रा में लोग यहां इकट्ठा होते हैं। अगर आप इस उत्सव का आनंद लेना चाहते हैं तो आप जनवरी फरवरी में भी यहां आने का सोच सकते हैं।

यहां कैसे पहुंचे?

सड़क मार्ग से-
जूनागढ़ तक गुजरात के अन्य शहरों से एसटी और निजी बसों द्वारा पहुंचा जा सकता है।

ट्रेन द्वारा-
जूनागढ़ पहुंचने के लिए अहमदाबाद-वेरावल रेल लाइन पर दो एक्सप्रेस ट्रेनें चलती हैं।

हवाई जहाज़ से-
जूनागढ़ से निकटतम हवाई अड्डा राजकोट है। यह जूनागढ़ से 103 किमी के दूरी पर है।

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